“शिक्षा जीवन की तैयारी नहीं, यह अपने आप में ही जीवन है”
जॉन डुई जी के यह विचार बिलकुल सही प्रतीत होते हैं। उन्होंने बहुत ही सरलता से दुनिया के समक्ष एक उच्च विचारधारा को साझा कर दिया।
इसी उद्धरण के साथ इस कहानी की ओर बढ़ते हैं। यह कहानी निःस्वार्थ भाव से की हुई सेवा का प्रमाण होने के साथ एक प्रेरणादायक कहानी भी है।
नई पहल –
यह बात वर्ष 2010 की है , जब मुंबई की लोकल ट्रेन के मुसाफिरों को एक अनूठा नज़ारा देखने को मिला। एक आदमी उस ट्रेन में भीख मांग रहा था, लेकिन स्वयं के लिए नहीं परंतु गरीब बेसहारा वंचित बच्चों के लिए जिन्हें पढ़ाई करने का, विद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने का कोई अवसर नहीं मिला। वह महान शख़्स हैं –
प्रोफेसर संदीप देसाई, यह मुंबई के गोरेगांव के रहने वाले हैं यह एक मरीन इंजीनियर और एक मैनेजमेंट प्रोफेसर रह चुके हैं। प्रोफेसर साहब का यह सामाजिक सेवा का सफर श्लोक मिशिनरीज़ (वर्ष 2001) से आरंभ हुआ। उनका अभियान उन बच्चों को शिक्षा प्रदान करने का था लेकिन वर्ष 2010 में प्रोफेसर संदीप देसाई जी ने इस अभियान को लोगों तक पहुंचाने एवं इसके लिए चंदा इकट्ठा करने का अलग उपाय निकाला और इसी के साथ पहुँच गए मुंबई की लोक ट्रेनों में।
एक कठिन सफर –
इस सफर में उन्होंने अपने विचार सभी यात्रियों के साथ साझा किए और उन्हें दान करने के लिए प्रेरित किया। वह हिन्दी ,मराठी एवं अंग्रेज़ी में बोलकर अपनी बात सभी लोगों के समक्ष रखते थे। यह शुरूआत बुरी नहीं थी परंतु हर बार इससे अपेक्षित आर्थिक सहायता मिलना आसान नहीं हुआ। कई बार लोग उन्हें गलत समझ जाते तो कभी उनके उद्देश्य को नहीं समझ पाते थे। लोगों के अनुसार, जो इंसान भीख मांग रहा है तो वह स्वयं के लिए ही मांग रहा होगा। वह उनके विचार को समझ ही नहीं पा रहे थे। उन सभी लोगों तक इस महान लक्ष्य को पहुंचाना अनिवार्य हो गया था।
प्रोफेसर देसाई रोज़ाना कई घंटे ट्रेन में खड़े रहकर अपनी संस्था के बारे में बता कर लोगों को इस दान के लिए प्रेरित किया करते। यही नहीं, वह लोगों को अपने एवं अपने इस कार्य क्षेत्र के बारे में बता कर दान के लिए प्रेरित करने के लिए कहा करते थे –“ही बेग्स टू ऐज्यूकेट।“ इसके साथ ही साथ वह उस लोकल ट्रेन में बोलते चलते थे – “विद्या दानं, श्रेष्ठ दानं” । यह शब्द वाकई में शिक्षा के महत्व के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए काफी हैं। हर किस्म की मुश्किल को पार करके वह धीरे–धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते चले गए। प्रोफेसर संदीप देसाई जी को उन मुश्किलों से ज्यादा ईश्वर पर और अपने निःस्वार्थ उद्देश्य पर विश्वास था।
अंततः मिल गई सफलता –
इस कठिन सफर के बाद उनको शुरुआती दिनों में लगभग 700 प्राप्त हो पाते थे। परंतु कई वर्षों की कड़ी मेहनत एवं लगन से यह आंकड़ा बढ़ कर लाखों में तबदील हो गया। आगे चलकर इस अभियान में कई बड़ी हस्तियां जैसे अभिनेता सलमान खान भी शामिल हुए। इस चंदे से कई अंग्रेज़ी माध्यम के विद्यालय तैयार हो गए जिनमें गरीब वंचित बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान कराई जाती है। बच्चों की जरूरत का विशेष ध्यान रखा जाता है ताकि उनकी पढ़ाई में कोई अड़चन न आने पाए। इसी के साथ प्रोफेसर देसाई का सपना, उनका उद्देश्य भी साकार हुआ और उन सभी बच्चों को उनका शिक्षा का तोहफ़ा भी मिल गया। वह बच्चे न सिर्फ जीवन के कई साधारण सुखों से वंचित हैं बल्कि वह अपने अति आवश्यक शिक्षा के अधिकार से भी वंचित रहे हैं।
प्रोफेसर संदीप देसाई जी ने शिक्षा का महत्व बखूबी जाना है। इसलिए अनेक प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने छह विद्यालय खड़े कर दिए। यह एक साधारण कहानी नहीं है, बल्कि यह एक होंसले से भरी आशाजनक एवं प्रेरणादायक गाथा है।
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सूत्र – इंडिया टाईम्स, यूट्यूब
लेखिका, संपादक – रितिका