इस शहर की आपाधापी में जहां लोग अपने जीवन में व्यस्त हैं। जहां मनुष्य अपने सुविधाओं के लिए पर्यावरण को दिन-ब-दिन नष्ट करता जा रहा है।पर्यावरण को नष्ट करने में सबसे बड़ा योगदान मनुष्यों का है। वहीं दूसरी ओर अजय राजपूत जी ने पर्यावरण के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ कदम उठाया। “पर्यावरण बचे तो प्राण बचे”। पर्यावरण का महत्व समझाने के लिए और इसके प्रति जागरूकता फैलाने के मकसद से उन्होंने कार्यक्रम का आयोजन किया।
रक्षा पृष्ठभूमि ( Defense Background) से संबंध रखने वाले अजय राजपूत जी को बचपन से ही प्राकृतिक से बड़ा लगाव रहा लोगों की प्रति स्नेह व मदत की भावना रही है। एक बार मिली असफलता के बाद भी उन्होंने अपनी हिम्मत नहीं हारी बल्कि दूसरी बार ,’ हिम्मत और साहस का प्रतीक देते हुए उन्होंने ‘Global Green Resonance Foundation’ की स्थापना की। इस दौरान उन्होंने कई मुश्किलों का सामना किया। चाहे कॉलेज में अपने काम के प्रति लोगों को समझाना चाहे समाज से मिली निराशाओं को आशा की एक बूंद में परिवर्तन करने की राह। क्या, क्यों ,कैसे लोगों के सामने रखकर पर्यावरण को बचाने की डगर इतनी आसान नहीं रही। उन्होंने स्कूली और कॉलेज के विद्यार्थियों को शामिल कर इस मुहिम को चलाया। साक्षात्कार के दौरान उन्होंने बताया कि इस मुहिम में एसएनडीटी, गुरु नानक खालसा कॉलेज, रुइया कॉलेज, लाला लाजपत राय कॉलेज और मुंबई के मटुंगा के आसपास के अधिकतर कॉलेजों ने भागीदारी दिखाई। उनका मानना है कि ‘इस देश के भविष्य हमारे युवा पीढ़ी हैं, और आने वाली समस्या का निवारण भी उन्हें ही करना है‘। इसलिए इस मुहिम में इन्होंने विद्यार्थियों का चुनाव किया’।
इस सफर को तय करना इतना भी आसान नहीं रहा। शुरुआत के सफर में मात्र सात आदमियों से NGO का शुभारंभ हुआ। मुंबई, पुणे और कोल्हापुर 3 शहरों में इस मुहिम को चलाया जा रहा है और इसमें करीब 500+ स्कूल और कॉलेज को शामिल किया गया है। वेबिनार के द्वारा प्लास्टिक और पेड़ ना काटने के प्रति जागरूकता कार्यक्रम किए जा रहे हैं।
“कभी संशय न करो कि विचारशील , प्रतिबद्ध नागरिकों का एक छोटा सा समूह दुनिया बदल सकता है।” लाला लाजपत राय कॉलेज के विद्यार्थियों ने फटे पुराने कपड़ों का ढेर इकट्ठा किया वहीं दूसरी ओर गुरु नानक खालसा कॉलेज के विद्यार्थियों ने प्लास्टिक को अच्छे तरीके से साफ कर उसके छोटे आकार के रूप में ढाला। पहली बार गुरु नानक खालसा कॉलेज और NGO ने साथ मिलकर कचरे को कंपोज कर जैविक खाद बनाया। इसका उपयोग खेतों में किया। साक्षात्कार के दौरान उन्होंने बताया कि लोग इसे ‘बस सुनने तक है रखते हैं l जब वास्तविकता में करने की बात आती है तो लोग अपनी सहभागिता बहुत कम दिखाते हैं। उनका मानना है कि पर्यावरण से संबंधित और भी पाठ्यक्रम शामिल किया जाना चाहिए। जिससे आने वाली पीढ़ी को अपने प्राकृतिक संबंधित ज्ञान मिले।
Award:
एसएनडीटी कॉलेज द्वारा ” Appreciation Certificate” प्राप्त हुआ है। अंत में संदेश देते हुए वे कहते हैं, “if you change nothing, nothing will change!”
Article by : Sushmita Varun Shukla
Very well covered.
inspiring story.