आज जहां कृषि यह घाटे का सौदा हो चुकी है और सरकारें गांव में रोजगार पर जोर दे रही हैं वहीं ऐसे समय में बहुत से ऐसे लोग हैं जो कृषि को अपना रोजगार बनाकर अन्य लोगों को भी रोजगार उपलब्ध करवा रहे हैं। ऐसे ही यह कहानी गोरखपुर से सटे अमहिया गांव की है जहां पर एक पढ़ा लिखा व्यक्ति कृषि की तरफ उन्मुख हुआ है। भारत जैसे देश में जहां कृषि प्रमुख रूप से अर्थव्यवस्था में हिस्सा है ऐसे समय में युवाओं का कृषि की तरफ झुकाव एक सकारात्मक संदेश है। मुकुल त्रिपाठी एक अच्छे परिवार से ताल्लुक रखते हैं उनके पिता एक बड़ी कंपनी में चीफ इंजीनियर हुआ करते थे। मुकुल त्रिपाठी की शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय और अन्य कई बड़ी संस्थानों से हुई है। आज मुकुल त्रिपाठी ने अपने गांव में निजी जमीन पर लगभग 2 एकड़ में लेमनग्रास और 4 एकड़ खेत में मेंथा की फसल उगाई है। मुकुल त्रिपाठी का यह पहला प्रयोग है। उन्होंने इसके लिए तकनीकी का सहारा लिया। यूट्यूब के माध्यम से वीडियो देख देख कर सिखा, समझा और किसानों से बात किया। कई कंपनियों से संपर्क किया।

मुकुल त्रिपाठी ने लखनऊ, रायबरेली के किसानों से जाकर मुलाकात की और उनका अनुभव साझा किया। उन्होंने लखनऊ स्थित सीमैप शोध संस्थान से प्रशिक्षण भी प्राप्त किया। आज वह तन्मयता के साथ में खेती में जुड़ गए हैं। शुरुआत के रुझान बहुत अच्छे नहीं रहे। जानकारी के अभाव में फसल का विकास अच्छा नहीं हो रहा था। अभी उनकी फसल बहुत अच्छी है और कटने को तैयार है। इसके लिए उन्होंने एक डिस्टलेशन यूनिट लगा रखी है जहां से तेल निकालकर बेचा जाएगा। मुकुल त्रिपाठी के इस प्रयास पर उस क्षेत्र के हजारों किसानों की नजर टिकी हुई है। लोग यह देखना चाहते हैं कि क्या यह व्यवसाय सफल है। अगर मुकुल त्रिपाठी सफल होते हैं तो उस क्षेत्र में इस तरह के हजारों किसान इस तरह के प्रयोग को अपना सकते हैं जो इस क्षेत्र के लिए औषधि खेती के रूप में एक बड़ा बदलाव हो सकता है। आप भी खेत का भ्रमण कर सकते हैं और गांव में ग्रामीण मजदूरों के लिए वेहतर विकल्प हो सकता है।

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