जरूरी नही की हर समय, जुबा पर भगवान का नाम आये

वो लम्हा भी भक्ति का होता है, जब इंसान इंसान के काम आये!

कोलकता शहर के रिषड़ा इलाके में रहने वाले ओमप्रकाश पांडेय एक ऐसा ही उदाहरण हैं, जिनके बारे में शायद ही कोई जानता होगा। ओमप्रकाश पांडेय पेशे से एक अध्यापक है, मगर शिक्षा के साथ साथ उनका शौक सामाजिक कार्यक्रमों में भी है! लोगों की मदद करके वह अपने अंदर आनंद की

अनुभूति करते हैं। यह उनके अंदर बचपन से ही रहा है! विद्यार्थी जीवन में भी वह अपने साथ पढ़ने वालों की सहायता के लिए हमेशा से आगे रहते थे। वह विद्यार्थी जीवन में टिफिन भी गरीबों को दान कर देते थे। यहां तक कि वो तो अपनी जमा किए हुई पैसों से जरूरतमंदों को कॉपी तथा पुस्तक देते थे ताकि उनकी पढ़ाई में कोई रुकावट ना आए। कई गरीब लड़कियों की शादी में भी उन्होंने भाई की भूमिका निभाते हुए अपना योगदान दिया।

उन्होंने गरीब बच्चों की मदद के लिए “भारतीय शिक्षा सदन” नाम से एक स्कूल खोला। कम फीस में उन्होंने कई गरीब बच्चों को पढ़ाया, उनका मानना है कि उनके अंदर जो प्रेरणा है वो आत्मविश्वास के वजह से आती हैं।

काफी कम उम्र में ही उन्होंने अपना घर संभाला। साइकिल पर सुबह 6:00 बजे से लेकर शाम 8:00 बजे तक वह ट्यूशन पढ़ाने के लिए निकल पढ़ते थे। जिंदगी में इतनी उतार चढ़ाव आने के बाद भी उनका संघर्ष जारी रहा और आज भी जारी है। ओमप्रकाश पांडेय न केवल अपने बच्चों के बारे में बल्कि बहुत सारे बच्चों को अपना ही बच्चा समझ कर, पूरे उत्साह के साथ उनकी जरूरतों को पूरा किया करते थे।

अपने अनुभवों को बताते हुए उन्होंने कहा कि ‘व्यक्ति यदि परिश्रम करता है तो उसको सफलता निश्चित रूप से मिलेगी। अपने आत्मविश्वास और अपने कार्य के प्रति निष्ठावान होना ही एक इंसान की ताकत है’ उन्हें पता है वह जो भी कर रहे है समाज के कल्याण हेतु कर रहे हैं। यह सोच न केवल उन्हें प्रोत्साहित कर रही थी बल्कि उन्हें बल भी प्रदान कर रहा था।

‘कर्म करो, फल की चिंता मत करो’ सिद्धांतों को अपना गुरु मंत्र मान कर ओमप्रकाश पांडेय ने सबके कल्याण हेतु कार्य किया। गीता के मंत्रों से प्रेरणा लेकर इस लोक-कल्याण में नित्य निरंतर लगे रहते हैं। समाज में ओम प्रकाश पाण्डेय जैसे और लोगों की सख्त जरूरत है जो हर कठिन परिस्थितियों में समाज के साथ खड़े रहे।

लेखक : स्वाती पाण्डेय

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