कोरोना काल एक भव्य आपदा बना हुआ है। संक्रमण के डर ने मानव को हताश कर दिया है। लोग चाह कर भी इस बुरे दौर में मदद का हाथ बढ़ाने से संकोच करने पर मजबूर हो गए हैं। आज स्थिति यह है कि मदद करना एक जोखिम भरा काम लगने लगा है लेकिन कुछ लोग हैं जो आज भी निःस्वार्थ भाव से मदद का हाथ बढ़ाने को तैयार हैं। कोरोना काल में ऐसी अनेक कहानियां हैं जिनमें लोग एक दूसरे की मदद कर रहे हैं, जहाँ लोग अपनी परवाह किए बगैर मदद का हाथ बढ़ा रहे हैं। कोई रोजाना खाने का प्रबंध करने में जुटा है तो कोई दवा उपलब्ध कराने में अपना सहयोग दे रहा है।
कोरोना से लड़ते योद्धा –
कोरोना की दूसरी लहर और भी ज़्यादा हानिकारक साबित हुई है। ऐसे में जरूरत मंदो की सहायता करना और भी कठिन रहा है। फिर भी हमारे पास कई कर्मवीरों की गाथा सामने आई जिन्होंने कोरोना काल में मरीज एवं उनके परिजनों की सहायता की।
ऐसे ही अनेक योद्धाओं में से एक हैं, आंध्र प्रदेश के कुसालापुरम गाँव के रहने वाले श्री सुरा श्रीनिवासा राओ। यह एक उद्यमकर्ता और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। कोरोना काल में इन्होंने जरूरत मंदो को खाना एवं अत्यावश्यक वस्तुओं को पहुंचाने का बेहद नेक कार्य किया है। इनके इस महान एवं निःस्वार्थ भाव से की हुई मदद की चर्चा कई वेबसाइट्स एवं समाचारपत्रों के लेख में पढ़ने को मिली है।
हम स्वयं को एक भाग्यशाली समाज का हिस्सा मानते हैं जहाँ श्रीनिवासा जी जैसे महान एवं भले लोग मौजूद हैं। दि न्यू इंडियन एक्सप्रेस , द हिंदू आदि, समाचार पत्रिकाओं एवं वेबसाइट के लेख में इनके इस खाना एवं अत्यावश्यक वस्तुओं को जरूरत मंदो तक पहुंचाने के नेक कार्य का उल्लेख किया गया है।
श्रीनिवासा जी ने 800 खाने के पैकेट गरीब, कोरोना के मरीज़ एवं मजदूरों तक पहुंचाने का बेहद नेक कार्य किया। यही नहीं इनके साथ इनकी पत्नी श्रीमती सरिता रानी भी इस महामारी के दौर में मदद करने में उनके साथ शामिल हुईं। श्रीनिवासा जी अपने इस महान कार्य को आने वाले समय में जारी रखने में रूची रखते हैं।
उनके बारे में जानकर हमें उनसे प्रेरणा मिलती है कि मुसीबत के समय कैसे मनुष्य ही मनुष्य के काम आता है। वह उन गरीब एवं मजबूर लोगों की परेशानी को बखूबी समझ कर उनकी मदद के लिए आगे आए। एक महामारी में और एक भयानक त्रासदी में स्वयं को आगे ना रखकर दूसरों के लिए आगे आने का मन बनाना ही एक बहुत उदारता वाली सोच को दर्शाता है।
देश भर में लगे कर्फ्यू के चलते हर व्यक्ति किसी न किसी प्रकार से आर्थिक परेशानियों से जूझ रहा है,, इसी के साथ न चाहते हुए भी लोग संक्रमण के डर से बाहर निकलने से परहेज रख रहे हैं। और ऐसे में एक सेवा भाव से लोगों के काम आना और उनकी तकलीफ़ को समझना बहुत प्रशंसा योग्य है।
ऐसी अन्य गाथाएं हैं जो शायद हम तक पहुंच भी ना पाई हो परंतु फिर भी वह सभी सेवाएँ प्रदान हो रही हैं। ऐसी प्रेरणादायक अनकही कहानियों से रूबरू होना बहुत सौभाग्यशाली है। इस भयंकर महामारी के दौर में इस प्रकार से लोगों तक मदद पहुँचाने के इस निःस्वार्थ सेवा भाव को सलाम।
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लेखिका, संपादक : रितिका